रूह का सफ़र थी ये ज़िंदगी,
या फ़िर थी एक अँधेरी राह?
अँधेरों में कैसे माने,
क्या और है, क्या मेरा?
सच जो रो रहा है,
वो अकेला खड़ा है,
वो तुमसे पूछता है,
क्या तुम साथ हो?
बातों की कमी नहीं थी ज़िंदगी
दिलों की ज़ुबान भी ना थी गुमराह
रोशनी जो मिल रही थी,
कुछ और नहीं, साथ था, तेरा मेरा!
साथ में जो शक़ जुड़ गया है,
सच तो कहीं बिछड़ गया है,
पीछे से पुकारता है,
क्या तुम साथ हो?
या तो तुम साथ हो
या मुझको भी
ये फ़र्क करना
तुम सीखा दो
सच भी कभी तो
सच नही
चाहे लगना
उसे सीखा दो